Wednesday, July 01, 2015
S.S.L.C. Hindi 3
मैं
दुबली हुई नदी हूँ। मैं हिमालय
से निकलती हूँ। लेकिन मैं अब
मैली कुचैली हो गई हूँ। मुझ
पर मरी हुई इच्छाओं की तरह
मछलियाँ उतराई हैं। मुझे नहीं
मालूम है कि किसने मेरे जल का
अपहरण किया। बाघ,
कछुवा,
हाथी आदि
जंगली जानवर मेरे पास आकर
प्यास बुझाते हैं और क्रीडा
करते हैं। मैं उनकी क्रीडाएँ
सानंद सहती हूँ। मानव के द्वारा
निर्मित कारखाना और उससे बह
आने वाले दूषित जल मैं सालों
से झेलती हूँ। इस कारण मेरी
शुभ्र त्वचा बैंगनी हो गयी
है। मेरे सिरहाने हिमालय पहाड़
है। फिर भी साबुन की एक टिकिया
से मैं हार गयी। मैं क्या करूँ?
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simple to study
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