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Saturday, October 13, 2012

एकल अभिनय अथवा एक-पात्रीय नाटक


श्री.परवेज़ अख्तर से लिखित यह टिप्पणी  केरल के अध्यापक मित्रों से साझा (share) करना चाहता हूँ । यह टिप्पणी ' रंगायन ' से शैक्षिक आवश्यकताओं केलिए ली है। कॉपीराइट की कोई मामला है तो इसे जलदी ही हटा देंगे।जी.सोमशेखरन  श्री. परवेज़ अख्तर  
रंगमंच अभिनेता का माध्यम है, किन्तु दुर्भाग्यवश रंगमंच में अभिनेता की अलग पहचान नहीं बन पायी | इस पहचान के बिना रंगमंच की पहचान भी संभव नहीं है | ‘एकल अभिनय’ पूरी तरह अभिनेता का रंगमंच है | यह एक अभिनेता को उसके द्वारा अर्जित अनुभव, कार्यदक्षता और कल्पनाशीलता के प्रदर्शन का स्वतंत्र अवसर उपलब्ध करता है और उसे उसकी जादुई शक्ति के साथ रंगमंच पर प्रतिष्ठापित भी करता है | एकल नाट्य (या एकल अभिनय) किसी भी स्तर पर सामूहिकता का निषेध नहीं करता, बल्कि यह सामुदायिक जीवन का अंग है, क्योंकि यह व्यापक दर्शक समुदाय को सम्बोधित होता है |
Heeba-Shah

ऊपरी तौर पर ‘एकल अभिनय’ भले ही सरल लगता हो; किन्तु वास्तव में, यह ‘समूह-अभिनय’ से ज्यादा जटिल है और कल्पनाशीलता तथा नाट्य-कौशल में सिद्धहस्त अभिनेता की माँग करता है | समूह अभिनय में, जहाँ अनेक अभिनेताओं की क्रिया-प्रतिक्रिया के संघर्ष से नाट्य प्रभाव की सृष्टि होती है; वहीं एकल अभिनय में, अभिनेता के भीतर यह नाट्य-व्यापार घटित होता है, जो उसकी शारीरिक क्रिया द्वारा मंच पर साकार होता है | एकल अभिनय, मूल-धारा के समूह अभिनय के विरुद्ध नहीं है; बल्कि यह उसे सम्पुष्ट करता है, बल प्रदान करता है; सबसे अधिक यह रंगमंच की अनिवार्य इकाई अभिनेता को विशेष पहचान देता है, उसके प्रति दर्शकों की आस्था को शक्ति प्रदान करता है | इसप्रकार यह रंगमंच के नायक ‘अभिनेता’ को पुनर्स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है |
बांग्ला रंगमंच में, एकल अभिनय की परम्परा काफी वर्षों से है और तृप्ति मित्र-साँवली मित्र के प्रयोग का भारतीय रंगमंच में उच्च-मूल्यांकन किया जाता है | बाऊल एक तरह का एकल नाट्य ही है | महान बांग्ला अभिनेता शांति गोपाल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर चर्चित ‘लेनिन’, ‘कार्लमार्क्स’, ‘सुभाषचंद्र’, ‘राममोहन रॉय’ आदि पर मंचित जात्रा; एक हद तक, उनका एकल अभिनय ही था | इधर कुछ वर्षों से; हिन्दी, कन्नड़, मराठी और अन्य भारतीय भाषाओं में एकल अभिनय के अनेक अभिनव प्रयोग किये गए हैं | पटना में ‘नटमंडप’ द्वारा इस सिलसिले को पिछले कुछ वर्षों से गंभीरता से आगे बढाया गया है | बिहार के अन्य कतिपय रंगकर्मियों द्वारा भी एकल अभिनय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये गए हैं |
रंगमंच के लिए किसी नाट्य प्रयोग की प्रासंगिकता, उसके द्वारा संपूर्ण नाट्य प्रभाव की सृष्टि और नाट्यकला का आस्वाद करा पाने की उसकी क्षमता में अन्तर्निहित है | इसलिए, एकल अभिनय एक सामान्य नाट्य मंचन जैसा ही है, जिसमें एक-अकेले अभिनेता के अतिरिक्त, किसी दूसरे अभिनेता की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती और इसकी सफलता भी इसी में है कि दर्शक को किसी भी क्षण किसी अन्य अभिनेता के न होने का अहसास न हो | एकल अभिनय को, रंगमंच के एक ‘फॉर्म’ अथवा शैली के रूप में दर्शकों की स्वीकृति भी मिल रही है और यह रंगमंच के हित में है|

2 comments:

  1. ഉപകാരപ്രദമായ പോസ്റ്റ്.
    പഠിക്കുന്നവര്‍ക്കും പഠിപ്പിക്കുന്നവര്‍ക്കും സഹായകരമാണ്.

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