रंगमंच अभिनेता का माध्यम है, किन्तु दुर्भाग्यवश
रंगमंच में अभिनेता की अलग पहचान नहीं बन पायी | इस पहचान के बिना रंगमंच
की पहचान भी संभव नहीं है | ‘एकल अभिनय’ पूरी तरह अभिनेता का रंगमंच है |
यह एक अभिनेता को उसके द्वारा अर्जित अनुभव, कार्यदक्षता और कल्पनाशीलता के
प्रदर्शन का स्वतंत्र अवसर उपलब्ध करता है और उसे उसकी जादुई शक्ति के साथ
रंगमंच पर प्रतिष्ठापित भी करता है | एकल नाट्य (या एकल अभिनय) किसी भी
स्तर पर सामूहिकता का निषेध नहीं करता, बल्कि यह सामुदायिक जीवन का अंग है,
क्योंकि यह व्यापक दर्शक समुदाय को सम्बोधित होता है |
ऊपरी तौर पर ‘एकल अभिनय’ भले ही सरल लगता हो; किन्तु
वास्तव में, यह ‘समूह-अभिनय’ से ज्यादा जटिल है और कल्पनाशीलता तथा
नाट्य-कौशल में सिद्धहस्त अभिनेता की माँग करता है | समूह अभिनय में, जहाँ
अनेक अभिनेताओं की क्रिया-प्रतिक्रिया के संघर्ष से नाट्य प्रभाव की सृष्टि
होती है; वहीं एकल अभिनय में, अभिनेता के भीतर यह नाट्य-व्यापार घटित होता
है, जो उसकी शारीरिक क्रिया द्वारा मंच पर साकार होता है | एकल अभिनय,
मूल-धारा के समूह अभिनय के विरुद्ध नहीं है; बल्कि यह उसे सम्पुष्ट करता
है, बल प्रदान करता है; सबसे अधिक यह रंगमंच की अनिवार्य इकाई अभिनेता को
विशेष पहचान देता है, उसके प्रति दर्शकों की आस्था को शक्ति प्रदान करता है
| इसप्रकार यह रंगमंच के नायक ‘अभिनेता’ को पुनर्स्थापित करने का
महत्वपूर्ण कार्य करता है |
बांग्ला रंगमंच में, एकल अभिनय की परम्परा काफी वर्षों
से है और तृप्ति मित्र-साँवली मित्र के प्रयोग का भारतीय रंगमंच में
उच्च-मूल्यांकन किया जाता है | बाऊल एक तरह का एकल नाट्य ही है | महान
बांग्ला अभिनेता शांति गोपाल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर चर्चित
‘लेनिन’, ‘कार्लमार्क्स’, ‘सुभाषचंद्र’, ‘राममोहन रॉय’ आदि पर मंचित
जात्रा; एक हद तक, उनका एकल अभिनय ही था | इधर कुछ वर्षों से; हिन्दी,
कन्नड़, मराठी और अन्य भारतीय भाषाओं में एकल अभिनय के अनेक अभिनव प्रयोग
किये गए हैं | पटना में ‘नटमंडप’ द्वारा इस सिलसिले को पिछले कुछ वर्षों से
गंभीरता से आगे बढाया गया है | बिहार के अन्य कतिपय रंगकर्मियों द्वारा भी
एकल अभिनय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये गए हैं |
रंगमंच के लिए किसी नाट्य प्रयोग की प्रासंगिकता, उसके
द्वारा संपूर्ण नाट्य प्रभाव की सृष्टि और नाट्यकला का आस्वाद करा पाने की
उसकी क्षमता में अन्तर्निहित है | इसलिए, एकल अभिनय एक सामान्य नाट्य मंचन
जैसा ही है, जिसमें एक-अकेले अभिनेता के अतिरिक्त, किसी दूसरे अभिनेता की
उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती और इसकी सफलता भी इसी में है कि दर्शक को
किसी भी क्षण किसी अन्य अभिनेता के न होने का अहसास न हो | एकल अभिनय को,
रंगमंच के एक ‘फॉर्म’ अथवा शैली के रूप में दर्शकों की स्वीकृति भी मिल रही
है और यह रंगमंच के हित में है|
ഉപകാരപ്രദമായ പോസ്റ്റ്.
ReplyDeleteപഠിക്കുന്നവര്ക്കും പഠിപ്പിക്കുന്നവര്ക്കും സഹായകരമാണ്.
रसाकजी
ReplyDeleteधन्यवाद।