वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिध्द थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्रह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के काऱण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। और उनके विस्र्ध्द षङ्यंत्र रचते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों का परिणाम थी। बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुंचा था। इसका परिणाम है उनके मुँख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ: दीन जान सब दीन, एक दुरायो दुसह दुःख, सो अब हम को दीन, कुछ नहीं ऱाख्यो बीरबल। अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नये धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे अकेले बीरबल।
Tuesday, June 23, 2015
आठवीं कक्षा के सक्रिय संचालन केलिए एक सहायक सामग्री 4
बीरबल की विनोद-प्रियता और बुध्दिचातुर्य ने न केवल अकबर, बल्कि मुग़ल साम्राज्य की अधिकांश जनता का मन मोह लिया था। लोकप्रिय तो बीरबल इतने थे। कि अकबर के बाद उन्हीं की गणना होती थी। वे उच्च कोटि के प्रशासक, और तलवार के धनी थे। पर शायद जिस गुण के कारण वे अकबर को परम प्रिय थे, वह गुण था उनका उच्च कोटि का विनोदी होना। बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे।
वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिध्द थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्रह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के काऱण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। और उनके विस्र्ध्द षङ्यंत्र रचते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों का परिणाम थी। बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुंचा था। इसका परिणाम है उनके मुँख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ: दीन जान सब दीन, एक दुरायो दुसह दुःख, सो अब हम को दीन, कुछ नहीं ऱाख्यो बीरबल। अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नये धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे अकेले बीरबल।
वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिध्द थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्रह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के काऱण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। और उनके विस्र्ध्द षङ्यंत्र रचते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों का परिणाम थी। बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुंचा था। इसका परिणाम है उनके मुँख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ: दीन जान सब दीन, एक दुरायो दुसह दुःख, सो अब हम को दीन, कुछ नहीं ऱाख्यो बीरबल। अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नये धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे अकेले बीरबल।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
'हिंदी सभा' ब्लॉग मे आपका स्वागत है।
यदि आप इस ब्लॉग की सामग्री को पसंद करते है, तो इसके समर्थक बनिए।
धन्यवाद