शिक्षा का जीवन में कितना महत्व है,इस संबन्ध में मैं अपने जीवन का एक प्रसंग लिख रहा हुँ जिन्हें पढ़कर तुम शिक्षा के महत्व को आसानी से समझ सकोगे।
घटना मेरे कक्षा ५ के विद्यार्थी जीवन की है।एक दिन मेरी किसी गलती पर तत्कालीन प्रधान अध्यापक श्री.मातादीन नायक ने मुझे पीट दिया।इस पर मैं नायकजी को गाली देकर स्कूल से भाग आया और फिर इस डर से पढ़ने नहीं गया कि वह मुझे पीटेंगे।
मेरे घर में खेती होती थी,अत: मैं मावेशी चराने लगा। मुझे मावेशी चराने में आनंद भी मिलने लगा।मैं बड़ी खुशी के साथ गाता -
"पढ़े-लिखे कुछ नहीं होवे,
ढोर चराने से दूध घी होवे।"
एक-दो बार नायकजी ने खबर भेजकर मुझे बुलाया लेकिन मैं नहीं गया।एक दिन खुद वे मेरे घर आ धमके। मैं मौके पर मिल गया।घर पर पिताजी भी थे,इसलिए मैं भाग भी न सका।उन्होंने अपने पास बुलाकर मेरे सिर पर प्रेम का हाथ फेरते हुए मुझसे कहा,"महानारायण,तुम बहुत दिनों से स्कूल नहीं आए,एसा क्यों?बेटा तुम मुझे सभी बच्चों से प्यारा हो,तुम्हारा स्कूल न आने से मेरा पढ़ाने में मन नहीं लगता।तुम होनहार लड़के हो,तुम जैसे लड़के नहीं पढ़ेंगे तो कौन पढ़ेगा?"
"मास्टरजी,मेरे घर में काफी ज़मीन है,मुझे नौकरी नहीं करनी है,इसलिए मैं पढ़ना नहीं चाहता।"मैं ने झिझकते झिझकते दबी जबान से कहा।
"पढ़ने से नौकरी का क्या संबन्ध?बेटा,नौकरी केलिए ही नहीं पढ़ा जाता है"
"फिर किसकेलिए पढ़ा जाता है?"मैं ने पूछा।
"बहतर जिंदगी केलिए विविध विषयों का ज्ञान व बौद्धिक व नैतिक विकास जरूरी है।पढ़ाई इसी की पूर्ति करती है।"फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर मुझसे प्रेमभरे स्वर में कहा-"तू पढ़ना नहीं चाहता और तुझे पढ़ाना चाहता हूँ।अब तेरी चलेगी या मेरी?"
नायकजी की आत्मीयता भरे वचन सुनकर पिताजी बोले,"नायकजी आपकी ही चलेगी।यह बच्चा अबोध है,पढ़ाई के महत्व को नहीं जानता,थोड़ा पिटने से डरता है।"
"पिटने से?आज से मैं इसे कभी नहीं पीटूँगा।लेकिन इसे आज ही मेरे साथ पढ़ना चलना होगा।चलेगा?"उन्होंने मुझसे पूछा।
मुझे बरबस हां कहना पड़ा और मैं तत्काल उनके साथ स्कूल चला आया।
आज मैं यह महसूस करता हूँ कि यदि नायकजी मुझे घर से पकड़कर स्कूल न लाते,मुझसे पुत्रवत प्रेम न दर्शाती तो आज मैं एक असभ्य,अशिक्षित व्यक्ति होता और मेरा जीवन पशुवत होता।
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