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Tuesday, January 10, 2012

निचोड़ १(दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका से साभार)

जो जल बाढै नाव में, घर में बाढै दाम
दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानों काम

संत शिरोमणि कबीरदास जी का आशय यह है किसी कारणवश नाव में जल भरने लगे और घर में धन की मात्रा बढती चली जाये तो बिना देरी किये दोनों हाथों से उसे निकालो, यही बुद्धिमानी का काम है, अन्यथा डूब जाओगे।
वह जीवन के गूढ़ रहस्यों के साथ मनुष्य के मनोविज्ञान को कितनी गहराई सा समझते थे उनकी रचनाओं को देखकर यह समझा जा सकता है. कबीरदास जीं कोई न तो कोइ पूंजीपति थे और न ही आश्रमों का निर्माण करने वाले संत. जीवन भर अपने परिवार के साथ घर में रहे. कोई पाखंड या दिखावा नहीं किया, यही कारण यह है कि उनका जीवन दर्शन आम आदमी के निकट दिखाई देता है.

अगर आज हम देखें तो हमारे अन्दर जो मन है वह भावनाओं की नदी में तैरता है. आजकल उसमें भगवान् की भक्ति की जगह ऐसे भाव भरे जा रहे हैं जिससे उनका आर्थिक दोहन किया जा सके-और अगर कोई इसके बाद भी हाथ नहीं आता तो भक्ति में ही ऐसे आकर्षक तत्व जोड़ दो कि अपने आप आदमी जेब ढीली करेगा. एक मजे की बात यह है कि मैने देखा है कि भक्ति के तंतु अगर बचपन में आदमी के मन में नहीं बैठे तो फिर कभी नहीं आते और आजकल धार्मिक चैनलों को लेकर ऎसी टिप्पणी आती है कि वह तो केवल बूढों के लिए है-और भगवान की भक्ति तो बुदापे में की जाती है . मैं इन बातों पर बचपन पर ही हंसता हूँ. मैं हर विषय में दिलचस्पी लेता हूँ पर लिप्प्त भक्ति में ही होता हूँ क्योंकि मुझे यह संस्कार बचपन से मिले हैं. श्रीवाल्मिकी रामायण, श्रीगीता और श्रीगुरु ग्रंथ साहब के साथ हिंदी साहित्य में कबीर दास की रचनाओं के अध्ययन मैने भक्ति और चिंतन के साथ किया है. शायद यही वजह है कि मुझे इन पर लिखने में बहुत मजा आता है इस बात की परवाह किये बिना कि उसे कितना पढेंगे. कबीर दास का जीवन के प्रति सहज और सरल भाव मुझे सदैव आकर्षक लगता है. वह हमेशा ही सादगी से दैहिक जीवन जिए और आत्मिक रूप से आज भी हमारे आध्यात्म विचार का महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं. इसलिये कहता हूँ कि जो आदमी जीवन में सहज है वह कबीर है और जो असहज है वह गरीब है. जिसके पास सब कुछ है पर संतोष नहीं है उसे गरीब नही तो क्या कहा जायेगा. ऐसे महान संत को मेरा प्रणाम.

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