दिसम्बर 2004 में आए सुनामी, जिसने इण्डोनेशिया, थाईलैंड और श्रीलंका में भयंकर तबाही मचाई थी, से श्रीलंका का याला नामक अभ्यारण्य (animal reserve) बुरी तरह से विनष्ट हुआ था और उसमें अनेक पर्यटक मारे गए थे किन्तु आश्चर्य की बात है कि वहाँ संरक्षित बन्दरों, चीतों, तेन्दुओं, हाथियों जैसे 130 प्रजाति के पशुओं में से किसी का भी मृत शरीर नहीं पाया गया। आखिर उन प्राणियों ने विशाल समुद्री लहरों से अपनी रक्षा कैसे कर लिया?
भूकंपीय घटनाओं के पूर्व ही उनके विषय इन प्राणियों के द्वारा जान लेने में कौन सा तंत्र कार्य करता है इस विषय में आज चीन और जापान में बहुत सारे शोधकार्य हो रहे हैं।
केवल भूकंप ही नहीं बल्कि सूर्य या चन्द्र ग्रहण जैसी घटनाओं का भी बोध इन प्राणियों को हो जाता है जबकि हम इन प्राणियों को अबोध ही कहते और समझते हैं। बन्दर जैसा चंचल शायद ही कोई अन्य जीव हो किन्तु ग्रहण आरम्भ होने के पूर्व ही बन्दर न केवल अपनी चंचलता अर्थात उछलना-कूदना बंद कर देता है बल्कि भोजन भी त्याग देता है तथा किसी पेड़ की शाखा पर गुमसुम सा चुपचाप बैठ जाता है। और भी अनेक पशु-पक्षी हैं जो ग्रहण के प्रभाव से बचने के लिए ग्रहण लगने के पहले ही सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं।
सूर्य और चन्द्र ग्रहण की जानकारी भी इन अबोध जीवों को होती है। हर समय उछल-कूद करने वाला बंदर ग्रहण शुरू करने से पहले भोजन त्याग देता है और चुपचाप पेड़ की डाल पर बैठ जाता है। ग्रहण के प्रभाव से बचने के लिए ये पशु-पक्षी अपने सारे क्रिया-कलापों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि तोते भी अपने आसपास घटने वाली घटनाओं के विषय में उनके घटित होने के पहले ही जान लेते हैं? सामान्य तौर पर चहकते रहने वाले तोतों का स्वर किसी अशुभ घटना होने के पहले आश्चर्यजनक तौर पर बदल जाता है। एक जानकारी के अनुसार तोते की इसी विशेषता के कारण प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पेरिस के ‘एफिल टॉवर’ में तोतों को रखा गया था, ताकि ये हवाई हमले की पूर्व सूचना दे सकें।
मैना तो एक प्रकार से मौसम विज्ञानी ही होती है। यह पक्षी वर्षा की सूचना 12 से 36 घंटे पहले दे सकने का सामर्थ्य रखती है। यदि वर्षा या तूफान आने की संभावना होती है, तो मैना जोर-जोर से चहकने लगती है। भीषण वर्षा की जानकारी देने के बारे में तिब्बत और दार्जिलिंग की पहाडि़यों पर पाये जाने वाले ‘सारस’ अत्यंत कुशल होते हैं। इन पहाड़ी सारसों को सुरक्षित स्थानों, पहाडी चट्टानों और गुफाओं की ओट में जाते देखकर स्थानीय लोग भी अपने सामान को लेकर सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं।
जापान में एक मछली पाई जाती है, जो रंग बदलती रहती है। उनके बदलते रंग से वहां के लोग मौसम का अनुमान लगाते हैं। मछली का रंग लाल हो तो वर्षा आने की संभावना होती है। यदि उसका रंग हरा हो तो सर्दी बढ़ने का अनुमान होता है और यदि वह सफेद रंग की हो जाए, तो गर्मी होने की संभावना रहती है।
मधुमक्खियां वर्षा के प्रति अत्यंत संवदेनशील होती हैं। इन्हें कुछ घंटों पहले पता चल जाता है कि वर्षा होने वाली है। तब ये अपने छत्तों से बाहर निकल कर उसके चारों ओर मंडराने लगती हैं। धीरे-धीरे इनका घेरा बड़ा हो जाता है और थोड़ी देर में उड़ कर सुरक्षित स्थान पर चली जाती हैं। वर्षा समाप्त होने पर ये फिर से अपने छत्तों में लौट आती हैं।
दक्षिण अमेरिका में ‘लेहा’ नामक मकड़ी पेड़ों पर अपना जाला बनाती है। जब यह मकड़ी अपने ही बनाये जाल को तोड़ देती है, तो 24 घंटों के भीतर तेज वर्षा और आंधी आने की चेतावनी होती है। सफेद कबूतर कतार बनाकर ऊंचे आसमान में उड़ान भरने लगें, तो जाना जाता है कि बिना मौसम बरसात होने वाली है। वर्षा आने से पहले छोटी काली चीटियां अपने अंडों को लेकर ऊंचे स्थानों पर चली जाती हैं। मेंढक की टर्र-टर्र से सहज अंदाजा होने लगता है कि वर्षा होने वाली है। घरेलू गौरैया जब पानी या धूल में उछल कूद करके नहाने लगे, तो यह भी वर्षा आने की पूर्व सूचना मानी जाती है।
पशु-पक्षियों की इस प्रकार की अतीन्द्रिय क्षमताएँ आज भी वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है।
आंशिक जानकारी उजाला मासिक (जुलाई 2010) से साभार
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