ज्ञानेन्द्रपति की अप्रतिमता के कारकों में अवश्य ही यह तथ्य है कि उसकी जड़ें लोक की मन-माटी में गहरे धँसी हैं और उसकी दृष्टि विश्व-चेतस् है। जीवन-राग उनकी कविता में लयात्मकता में ढल जाता है। वे गद्य कविता के नहीं उस मुक्तछन्द के कवि हैं निराला ने जिनकी प्रस्तावना की थी।
उनकी कविता आद्यन्त छान्दिक आवेग से ओतप्रोत है, बल्कि उसकी संरचना उसी से निर्धारित होती है। बेशक, यह हर बार एक नए छन्द का अन्वेषण है जो कविता के कथ्य के अनुसार जीवन-दृव्य के साथ कवि-चित्त की एकात्मा से सम्भव होता है। हिन्दी की विशाल भाषिक सम्पदा का सार्थक संदोहन भी उनके यहाँ खूब बन पड़ा है। तद्भव-सीमित रहना उनकी कविता की मजबूरी नहीं, उसके लिए न तो तत्सम अछूत है, न देशज अस्पृश्यः, अवसरानुकूल नये शब्दों के निर्माण की उसकी साहसिकता तो कुख्यात होने की हद तक विख्यात है। ज्ञानेन्द्रपति की कविता एक ओर तो छोटी-से-छोटी सचाई को, हल्की-से-हल्की अनुभूति को, सहेजने का जतन करती है, प्राणी-मात्र के हर्ष-विषाद को धारण करती है; दूसरी ओर जन-मन-भूमि पर दृढ़ता से पाव रोपे सत्ता-चालित इतिहास के झूठे सच के मुकाबिल होती है। धार्मिक सत्ता हो या राजनीतिक सत्ता वह किसी को नहीं बख्शती। उसकी दीठ में संतप्त भूगोल है। साम्राज्यवाद के नये पैतरों को वह पहचानती है। अभय में पगी हुई करुणा उसे विरासत में मिली है। वह एक महान् परम्परा की परिणति है।
dear sirji,meri ek chotti si kavith...
ReplyDelete" waqt ek din zaroor ayenge"
"panchedriy se kar diya kamaal
gyann ki dariyaa me thyrkar
dikhlaaya indriyom ko paina banaakr
samvedanavom ke kasouti par kaskar..
jinka naam hei gyannendrapathiji
uthraa hei aasmaan se farishtha bankar
prakruthy aur putri nadi ko bachane
'bhageerath'bankar aaye hai...
somanji aapne dikhaya unka chehra
sunayi hai aaj unki udaath vaani
unke hi muh se...dil ke kareeb se
meri tharf se phoolom ka guldastha...
nadi aur saabun ko lekar niklaa hai
dheek raastha dikhane nikle hai
kavi naam hai jinke..aur farz jinka kaam
saabun tuche ek din pikhlayenge zaroor
us waqt ke intazaar mei hai hum"
deepak anantha rao
idukki district.
bhahuth hi upayogi hai. dhanyavad
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