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അഭ്യാസമില്ലാത്തവര്‍ പാകം ചെയ്തെതെന്നോര്‍ത്ത് സഭ്യരാം ജനം കല്ല് നീക്കിയും ഭുജിച്ചീടും..എന്ന വിശ്വാസത്തോടെ

Sunday, February 23, 2014

आसरा 19 (23-02-2014)


  29-01-2014ന് ദേശാഭിമാനി അക്ഷരമുറ്റം സപ്ലിമെന്റില്‍ ജി.എച്ച്.എസ്.എസ്. ആനമങ്ങാട് സ്കൂളിലെ ഹിന്ദി അധ്യാപകനായ മനോജ്കുമാറിന്റേതായി പ്രസിദ്ധീകരിച്ച ഹിന്ദി ചോദ്യപേപ്പറിന്റെ മാതൃകാ ഉത്തരപേപ്പര്‍ .PDF രൂപം പോസ്റ്റിന് താഴെ നിന്ന് ഡൗണ്‍ലോഡ് ചെയ്യാം
 തയ്യാറാക്കിയത് : രവി. എം., ജി.എച്ച്.എസ്.എസ്., കടന്നപ്പള്ളി
1. तालिका की पूर्ति करें।                                                  2
पाठ
प्रोक्ति
रचयिता
नदी और साबुन
कविता
ज्ञानेन्द्रपति
बाबूलाल तेली की नाक
कहानी
स्वयंप्रकाश
सकुबाई
एकपात्रीय नाटक
नादिरा ज़हीर बब्बर
भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य संबंध
लेख
आनंद शंकर माधवन
2. घटनाओं को क्रमबद्ध करके लिखें।                                      2
  • चपरासी ने कमरा खोला
  • ट्यूटर महोदय रजिस्टर खोलकर हाजिरी लेने लगे।
  • डिसेक्शन हॉल में प्रवेश करने पर देवदास के नथुनों पर तेज़ बदबू घुसी।
  • देवदास कुछ क्षणों तक लाशों को देखता रहा।
3. गजाधर बाबू की विशेषताएँ।                                            2
  • घरवालों के मनोविनोद में भाग लेना चाने थे।
  • स्नेही व्यक्ति थे और स्नेह के आकांक्षी थे।
4. अंग्रेज़ी शब्दों के साथान पर समानार्थी हिंदी शब्द-                   3
    नाजिया अपनी खाता संख्या भूल गई थी। वह पूछताछ काउंटर पहुँची। वहाँ से उसको प्रबंधक से मिलने का निर्देश मिला।
5. गरीब मज़दूरों की गंदी गलियों के बच्चों को पढ़ाई करके जिंदगी में उच्च स्थान प्राप्त करने का  2 अवसर नहीं मिलता। उनके घरों में आवश्यक सुविधाएँ भी नहीं होतीं। इसलिए कवि भगवत रावत ने अपनी कविता 'वह तो अच्छा हुआ' में ऐसा कहा कि 'ऐसे बच्चे देश का भविष्य बन नहीं सकते थे'
6. व्यापारियों की तरफ़ से व्यापार बढ़ाने के लिए कुछ--कुछ ऑफर दिए जाते हैं। 'दो खरीदें,  2  
एक मुफ्त में लें' जैसे। वास्तव में यह एक प्रकार की ठगी है। लेकिन ग्राहकों के मन को लुभाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। बड़े दाम में सामान बेचे जा रहे हैं।
7. हमारे देश में बेकारी की समस्या के कारण पढ़े-लिखे लोग और अनपढ़ लोग घूम रहे हैं। कुछ   2 नौकरियाँ भी ऐसी हैं जिसके लिए घर-घर घूमना पड़ता है। 'सकुबाई' नामक एकपात्रीय नाटक में अनपढ़ सकुबाई मेमसाब के घर में डिटर्जेंट बेचने के लिए आई लड़की को देखकर ऐसा कह रही कि- 'रोज़गार के लिए पढ़े-लिखे लोग भी घर-घर घूमते हैं और अनपढ़ भी'
8. डिसेक्शन हॉस का अनुभव: देवदास की डायरी                                  4
तारीख: …....................
         आज मेडिकल कॉलेज में मेरा पहला दिन था। थोड़ी-सी घबराहट के साथ मैं जल्दी ही कॉलेज पहुँचा। पहले एनॉटमी हॉल में प्रोफेसर डी. कुमार का भाषण था। ज़ोरदार, उपदेशात्मक भाषण। फिर डिसेक्शन हॉल में। हे भगवान! नौ मेज़ों पर एक-एक लाश और एक कद्दावार टंकी जिसमें लाशें तैर रही थीं। मौत का कुआँ जैसा लगा। हॉल में प्रवेश करते ही तेज़ बदबू नाक में घुसी थी। हम आठ छात्रों के लिए एक लाश थी। उन लाशों से हमें मानव शरीर की जटिल एनॉटमी सीखनी है। मेरी सहयोगी थी लक्ष्मी। हम दोनों को लाश का एक हाथ मिला। लेकिन यह विभाजन लक्ष्मी को पसंद नहीं आया। वह कोई लड़की सहयोगी चाहती थी। आज के दिन का अनुभव मैं कभी नहीं भूलूँगा।
9. गौरा की मृत्यु हुई: श्यामा के नाम महादेवी का पत्र                           4
                                                                    स्थान:....................,
                                                                   तारीख:....................
प्यारी बहन,
       कैसी हो? घर में सब कैसे हैं? मैं यहाँ ठीक हूँ।
       श्यामा, आज हमारी गौरा की मृत्यु हुई। तुम्हें मालूम था न कि कुछ दिनों से उसकी इलाज चल रही थी। वह बहुत दुर्बल हो गई थी। उस निर्मम ग्वाले की सुई ने हमारी प्यारी गाय का अंत कर दिया। आज सुबह, ब्रह्ममुहूर्त में, मेरे सामने ही उसकी मृत्यु हुई। उस निष्ठुर ग्वाले के विरुद्ध कोई कानूनी कार्रवाई लेने के लिए हमारे पास प्रमाण भी नहीं। लालमणि के बारे में सोचकर में ज़्यादा चिंतित होती हूँ। मैंने गौरा का पार्थिव अवशेष गंगा मैया को समर्पित किया।
       घर में सबको मेरा हैलो बोलना। शेष बातें अगली चिट्ठी में।
                                                                              तुम्हारी बहन,
                                                                                 महादेवी।
सेवा में
        श्यामा......,
        …..............
        …..............
10. गजाधर बाबू - गणेशी टेलिफोन पर बातचीत (घर पहुँचने पर निराशा के 
     अनुभव)                                                                         4
गजाधर बाबू: हैलो, गणेशी है?
गणेशी:        हाँ जी, मैं गणेशी बोल रहा हूँ। आप कैसे हैं?
गजाधर बाबू: ऐसे ही चल रहा है। तुम कैसे हो गणेशी
गणेशी:       मैं तो ठीक हूँ जी। मैंने आज भी आपके बारे में सोचा था। परिवार के साथ 
              बड़ी खुशी के साथ रहते होंगे न जी?
गजाधर बाबू: वह मेरी इच्छा मात्र रह गई गणेशी।
गणेशी:       क्यों जी? ऐसा क्यों बता रहे हैं?
गजाधर बाबू: मेरी बीबी-बच्चों को मेरे पैसे ही चाहिए। उनके लिए मेरी उपस्थिति भी 
              अच्छी नहीं लगती।
गणेशी:       हे भगवान! मैं क्या सुन रहा हूँ! पैंतीस साल तक अकेले रहकर परिवार के 
              साथ रहना शुरू करने पर ऐसा अनुभव?
गजाधर बाबू: मेरा परिवार मस्ती खुशी में ही सदा तत्पर है। कोई भी काम करने के लिए 
              तैयार नहीं। वेतन नहीं पेंशन मात्र है न? मैंने नौकर को छोड़ दिया। लेकिन 
              उससे मेरा परिवार असंतृप्त है।
गणेशी:       आपकी बीबी कैसी है जी?
गजाधर बाबू: बीबी तो सदा शिकायत करती है कि मैं अकेले साम करती हूँ, कोई भी 
              सहायता नहीं करता आदि। उससे खुशी की बातें कभी भी नहीं सुनतीं।
गणेशी:       आगे क्या करते हैं जी? वापस आते हैं? मेरे साथ रहकर काम करेंगे?
गजाधर बाबू: नहीं गणेशी। मैं एक चीनी मिल में नौकरी के लिए जाने के बारे में सोच 
              रहा हूँ। ठीक है गणेशी, फिर से फोन करूँगा।
गणेशी:      जी, ज़रूर कीजिए। धन्यवाद।


11. 'पर्यावरण की सुरक्षा में जैवविविधता का महत्वपूर्ण स्थान है' -  
     पोस्टर                                                                4
पर्यावरण हमारा रक्षा कवच है
पर्यावरण की रक्षा करें।
        जैविक विविधता पर्यावरण की रक्षा करती है।
    सावधान!
जंगलों का नाश न करें।
जलस्रोतों को सुरक्षित रखें।
प्लास्टिक का उपयोग कम करें।
पहाड़ियों को न मिटाएँ।
खेतों को बचाएँ।
नदियों से रेत न निकालें।
कारखानों पर नियंत्रण रखें।
           हमारे लिए, आगामी पीढ़ी के लिए
      पर्यावरण को बचाएँ।
    12. इस कविता का विषय 'शहरीकरण का फल' है।                        1
    13. कवितांश का शीर्षक- 'शहर'                                 1
    14. यह कवितांश मशहूर कवि रामेश्वर कांबोज हिमांशु से लिखा गया है। इसमें कवि 
     शहरीकरण की हानियों पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं।
          एक डाल से टूट गया पत्ता उड़ते-उड़ते कलकत्ता नगर पहुँचा। महानगर की भीड़ देखकर बेचारा पत्ता घबराया। कहीं भी देखें धूल-धुआँ हैं। पत्ते का सिर चक्कराने लगा। महानगर का शोरगुल सुनकर उसके कान का परदा फट गया। बहुत घबराकर बेचारा पत्ता किसी न किसी तरह अपनी बगिया में वापस आया।
          शहरीकरण के दुष्प्रभाव कवि ने अच्छी तरह व्यक्ति किया है। शहरीकरण एक विकराल समस्या बनते इस ज़माने में यह कवितांश बिलकुल प्रासंगिक और अच्छा है।            4
    15. संशोधन                                                                    2
    सैकड़ों वर्ष पहले की बात है। एक नगर में चित्रसेन नामक एक चित्रकार रहता था। वह चित्रकला में बड़ा पारंगत था। धीरे-धीरे उसकी ख्याति पूरे राज्य में फैलने लगी
    16. योजक से वाक्यों को मिलाकर लिखें।                                      1
         डॉक्टर से मिला और दवा भी ली लेकिन बुखार से आराम नहीं मिला।
    17. गुलाम शब्द संज्ञा है।                                                        1
    18. इसका में निहित सर्वनाम यह है।                                            1
    19. अनुभव शब्द का समानार्थी शब्द महसूस है।                                1
    20. समाज में बदलाव का असर बोली पर ज्यादा पड़ता है।                   1
    21. दास के अर्थ में गुलाम शब्द के इस्तेमाल के पीछे यह तथ्य भी छुपा है कि किसी ज़माने में अरब देशों में सेवा टहल के लिए बच्चों को काम में लिया जाता रहा।                    2
    22. उचित विशेषणों से खंड का पुनर्लेखन                                 2
    पड़ोसी के अहाते में आम और अमरूद के बड़े पेड़ हैं। उन्हीं के पास जासोन के लाल फूल खिले रहते हैं। ये फूल देखने में बहुत सुंदर हैं। कोई उन्हें तोड़ लें तो दूसरे दिन फिल खिल उठते हैं।



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    7 comments:

    1. पोस्टर में इतनी सारी बातें ....
      छात्रों केलिऎ कठिन होंगी ।

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    2. पोस्टर के लिए 4 अंक दिए जा रहे हैं। इसीलिए ऐसा दिया है। मुझे विश्वास नहीं कि इतनी बातें छात्र लिखें। विरले ही बच्चे इससे भी बेहतर उत्तर बनानेवाले भी हो सकते हैं। जो भी हो 4 अंकों का प्रश्न है, छात्र अच्छी तरह लिखने का प्रयास करें। धन्यवाद, रवि.

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    3. मुझे लगता है, हमारे बच्चों को पोस्टर के संबंध में अधिक जानकारी मिलने की जरूरत है। पहले, बच्चे सूचना और पोस्टर दोनों की उपयोगिता पर अवगत होना है। इन दोनों का लक्ष्य तो एक है, लेकिन तरीका भिन्न है। आराम से बैठकर वाचन द्वारा आशय ग्रहण करनेवालों के लिए सूचना पर्याप्त है। इसी आशय को छंद समय में पाठकों तक पहुँचाना पोस्टर का मुख्य उद्देश्य होता है। इसके लिए यह आकर्षक होना है (चित्र, चित्रीय लिखावट, attractive caption आदि से) और text बहुत कम होना है।
      तैयार करने के पहले यह भी सोचना ज़रूरी है कि यह कहाँ चिपकाएँगे। सड़क के किनारे किसी दीवार पर चिपकानेवाली पोस्टर और क्लास/स्कूल के सूचना-पट पर चिपकानेवाली पोस्टर के content की मात्रा में कमीबेशी होती है। क्योंकि एक का लक्ष्य गाड़ी के यात्री तक है तो, दूसरी का क्लास/स्कूल के विद्यार्थी अध्यापक, अभिभावक आदि है। गाड़ी के यात्री तुरंत गुज़र जानेवाले हैं, लेकिन दूसरे वर्ग के लोग ऐसे नहीं होते अथवा वे आराम से पढ़ सकते हैं। ये धारणाएँ क्लास की प्रक्रियाओं द्वारा छात्रों को मिलें।

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    4. बहुत अच्छा हुआ राव जी।- मैंने हिंदी में टाइप किया है।
      कहे जिसे आसरा, जिसे ज़रा देख तो जा
      कहे जिसे आसरा, सहारा उसका लेके तो जा
      खड़ी है अब भी तुम्हारे पलकों के सामने
      खड़ी है अब भी, तुम्हारे इशारों के सामने
      मगर
      इस आसरा को देखे बिना
      आप क्यों भागते, करवटें बदलते
      जिसके लिए जनम दी, वे तो अपनी राहों पर है
      हमराही क्या बनो तुम्हारी
      आसरा तो लगे सफारी।

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