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Wednesday, December 25, 2013

मुफ्त में ठगी


मुफ्त में ठगी
സൗജന്യങ്ങള്‍ക്ക് പിന്നാലെ പായുന്ന ഉപഭോക്താക്കളും അവരുടെ ഈ ബലഹീനതയെ മുതലെടുക്കുന്ന കച്ചവടക്കാരും! സൗജന്യമായി കിട്ടുന്ന വസ്തു,അത് നമുക്ക് പ്രയോജനമില്ലാത്തതാണെങ്കില്‍ അതും ചതി തന്നെയെന്ന് രാം കുമാര്‍ അത്രേയ് ഈ കവിതയിലൂടെ നമുക്ക് മുന്നറിയിപ്പ് തരുന്നു.
समस्या क्षेत्र : साँस्कृतिक अस्मिता और उसके विकास की अवधारणा का अभाव।
आशय : उपभोक्तावाद और विभिन्न वाणिज्यिक उत्पादों के विज्ञापन समाज में बुरा असर डालते हैं।
संबद्ध कथन : पत्र-पत्रिकाएँ दूरदर्शन जैसे माध्यमों से बच्चे बहुत अधिक विज्ञापन देखते होंगे। किसी एक विज्ञापन दिखाएँ जिसमें "मुफ्त" की बात भी हो।
पहला अंतर
प्रश्न करें:
? यह क्या है?
? क्या इसमें कोई विशेषता देख सकते हैं?
? "FREE" का हिंदी पारिभाषिक रूप क्या है?
? यहाँ ग्राहक को ज्यादा क्या मिलता है?
? यहाँ व्यापारी का मनोभाव क्या है?
छात्रों को प्रतिक्रिया करने का अवसर दें।
आई सी टी के द्वारा इस रपट का स्लाइड बनाएँ और छात्रों को दिखाएँ।

धोखेबाज़ी: नौजवान गिरफ्तार
नागपुर (महाराष्ट्र): तारीख:......... नौकरी की तलाश में लगे लोगों को धोखा देनेवाले नौजवान को पुलिस ने गिरफ्तार किया। "घर बैठे कमाएँ रु. 25,000 मासिक वेतन"शीर्षक में राज्य के प्रमुख अखबारों में इसने पिछले हफ्ते विज्ञापन दिया था। यह पढ़कर सैकड़ों उम्मीदवार दफ्तर पहुँचे। शैक्षिक योग्यता के अनुसार उम्मीदवारों को ग्रूप में बाँटकर परीक्षा चलाई और सफल उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए भी बुलाया। चुने गए उम्मीदवनारों से रु. 10,000 जमाराशि के रूप में वसूल भी किया। दिनों बाद उम्मीदवारों को पता चला कि वसूल की गई रकम के साथ ढोंगी बाबा गायब हो गया। धोखे में पड़े उम्मीदवारों के आरोप पर पुलिस उन्हें ढूँढ रही थी। इसी बीच अज्ञात टेलिफोन के आधार पर पुलिस ने उसे पकड़ लिया और गिरफ्तार किया।

रपट पढ़ने का अवसर दें।
? नौजवान क्यों गिरफ्तार किया गया?
? इस विज्ञापन पर कौन मोहित हुआ?
? उम्मीदवारों को क्या नुकसान हुआ?
छात्रों को प्रतिक्रिया का अवसर दें।
संबद्ध कथन: कुछ साहित्यिक रचनाएँ ऐसी धोखेबाजी की ओर हमें सतर्क करनेवाली हैं।
बाज़ारी छद्म के प्रति संवेदन प्रकट करनेवाली कविता है - "मुफ्त में ठगी"

वाचन प्रक्रिया:
(बूढ़े, किसान .........ठगी ही क्यों न हो)

सहायक प्रश्न पूछें -
? बूढ़े किसान ने क्या खरीदा?
? घर जाकर देखा तो उसे बोरे में क्या पाया?
? किसान शहर में वापस क्यों पहुँचा?
? उसकी हालत कैसी थी?
? विश्वास के स्थान पर ठगी क्यों दी गई?
? किसान के मन में कैसा विश्वास था?
? उल्टे में क्या हुआ?
? किसान की दृष्टि में ठगी क्या है?
"अपने थके पाँवों को
घसीटते हुए वह भूखा प्यासा
पसीने से लथपथ
सात कोस दूर जा पहुँचा शहर"
? यहाँ किसान का कैसा चित्र मिलता है?
? किसान किसका प्रतिनिधित्व करता है?
? अक्सर देखा जाता है कि चीज़ें खरीदने पर कुछ न कुछ मुफ्त में मिलता है। इसके पीछे व्यापारियों की कौन-सी मनोवृत्ति प्रकट होती है?
? व्यापारी क्या चाहता है?
? मुफ्त की चीज़ से कौन मोहित होता है?
? इसका परिणाम क्या होता है?
  • बाज़ार में हम कई प्रकार से ठगे जाते हैं? बिंदुओं की सहायता से चर्चा करें।
  • खाद्य में मिलावट
  • गुणवत्ता की कमी
  • मूल्य और वज़न की कमी
  • अनावश्यक चीज़ें मुफ्त के नाम से थोपे जाते हैं
? "उपहार के रूप में ठगी देना" इस कविता में निहित व्यंग्य है। इसे अभिव्यक्त करने के लिए कवि ने किन-किन दृष्टान्तों का प्रयोग किया है?
? "किसान संतुष्ट हो
लौट गया घर" - यहाँ आम जनता की कौन-सी मानसिकता प्रकट होती है? किसान किसका प्रतीक है?
? माल बेचने की खुशी में दूकानदार कुछ न कुछ मुफ्त में देता है तो उसे ठगी मानना कहाँ तक उचित है? क्यों?

छात्रों को प्रतिक्रिया का अवसर दें।
? किसान संतुष्ट होकर बाज़ार से घर लौट आया। वे उस दिन का अनुभव अपनी डायरी में लिखने लगे। उसने क्या-क्या लिखा होगा?
लेखन प्रक्रिया

सहायक बिंदु:
  • बाज़ार जाना
  • बीज और खाद लेना
  • ठगी मिलना
  • वापस आना
  • संतुष्ट होना
अगला अंतर

लेखन प्रक्रिया:
? छात्रो, हमने "मुफ्त में ठगी" कविता की चर्चा की है। अब हम कविता की आस्वादन टिप्पणी लिखें।
पृष्ठ सं. 92 की "मैं ने क्या किया" की सहायता से आकलन करें।

? मान लें कि किसान बाज़ार में हुए दुरनुभव का वर्णन करते हुए मित्र के नाम पत्र लिखते हैं। वह पत्र कल्पना करके लिखें।
छात्र वैयक्तिक रूप से लिखें।
चुनिंदे छात्रों की प्रस्तुति।
प्रस्तुति पर चर्चा ।
अध्यापक की अपनी प्रस्तुति ।


स्थान:...........,

तारीख:..........

प्रिय मित्र,

सप्रेम नमस्ते!

कई दिनों से तुम्हें पत्र लिखने के विचार में था। लेकिन खेती की व्यस्तता से समय नहीं मिला। अब एक खास कारण से लिख रहा हूँ। तुम जानते हो कि पिछले हफ्ते में मैं भी भौगोलीकरण का शिकार बन गया। बदलते परिवेश में उपभोक्तावाद भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए चुनौती है। इसका परिणाम यह है कि हम विज्ञापन के गुलाम बनकर असली और नकली चीज़ों को पहचानने में असमर्थ बन गए हैं। मेरा एक अनुभव यह है कि मैं बाज़ार की एक नई दूकान में बीज और खाद खरीदने गया। वहाँ मेरा बड़ा स्वागत हुआ। मैंने एक बोरा बढ़िया बीज और दो बोरे रासायनिक खाद खरीदे। घर आकर देखा तो मैं ने पाय कि ठग गया। सचाई का पता लगाने के लिए हाँफते-फूलते दूकान पहुँचा तो दूकानदार ने हँसते हुए कहा कि हमने उपहार के रूप में ठगी दी है। अपने पक्ष के समर्थन के लिए उन्होंने कुछ उदाहरण भी दिए।

मुझे अब पता चला कि हम शहर के झूठे छद्मों के प्रति अनभिज्ञ हैं। अंत में संतुष्ट होकर घर लौटा और सोचा कि मुफ्त में कुछ भी मिले, फायदा ही होता है। इससे हमारे जैसे आम आदमी को यह सबक मिलता है कि उपभोक्तावादी संस्कृति सौदागिरी के नए-नए तंत्र गढ़ती है। गुणवत्ता को छोड़कर केवल मुफ्त में मिलनेवाली चीज़ों में ध्यान रखने से बेचारे ग्राहक धोखे में पड़ जाते हैं। आशा है कि आप ने बढ़िया बीज संजोकर रखा होगा।

बीबी को प्रणाम और बच्चों को मेरा प्यार।



तुम्हारा मित्र,

(हस्ताक्षर)

नाम।

सेवा में:

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  • आस्वादन टिप्पणी लिखने के लिए उपर्युक्त पत्र से लाभ उठाएँ।
हमने क्या किया?

समस्या की अवधारणा दी
रपट लिखवाई
अंकित वाचन कराया
विश्लेषणात्मक प्रश्नों द्वारा कविता का विश्लेषण कार्य किया
पत्र लिखवाया
आस्वादन टिप्पणी लिखवाई
संशोधन करवाया

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