है पिपलांत्री. पत्थरों के इस गांव में लहलहाती हरियाली और झूमते पेड़ सरकार द्वारा चलाई जा रही पर्यावरण बचाने की मुहिम के लिए एक प्रेरक मिसाल हो सकते हैं. यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज़ खानापूर्ति नहीं है, बल्कि एक रिश्ता है, स्नेह है. गांव वाले अब तक एक लाख से भी ज़्यादा पेड़-पौधे लगा चुके हैं. इसमें गांव की महिलाओं की भागीदारी सबसे ज़्यादा है. गांव में हर किसी के नाम से एक पेड़ लगा हुआ है. उसकी सिंचाई, काट-छांट और देखभाल की ज़िम्मेदारी उसी पर है.
गांव में जब किसी की मृत्यु होती है तो उस परिवार के लोग उसकी याद में 11 पेड़ लगाते हैं और हमेशा के लिए उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी संभालते हैं. जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है तो ग्राम पंचायत द्वारा उस लड़की के नाम 18 साल के लिए 10 हज़ार रुपये की धनराशि जमा की जाती है, मगर लड़की के मां-बाप द्वारा तब तक हर साल 10 पौधे रोपे जाते हैं. इस तरह लड़की के ब्याह लायक़ कुछ पैसे जमा हो जाते हैं और गांव को 180 पेड़ मिल जाते हैं. पेड़ों को बचाने के लिए गांव में एक अनोखी मुहिम चलाई गई है. रक्षाबंधन के दिन गांव की महिलाएं पेड़ों को अपना भाई मानकर उन्हें राखी बांधती हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देती हैं. श्याम सुंदर पालीवाल बताते हैं कि पेड़ लगाने व़क्त कुछ बातों का ख्याल रखा जाता है. ज़्यादातर फलदार पौधे लगाए जाते हैं, ताकि जब ये पेड़ बनकर फल दें तो गांव की ग़रीब महिलाएं उन फलों को बेचकर कुछ पैसे कमा सकें. गांव में बड़े पैमाने पर एलोवेरा यानी ग्वारपाठा लगाया जा रहा है. गांव की हर पहाड़ी और हर रास्ते में एलोवेरा लगा है. पंचायत की योजना है कि यहां एलोवेरा जूस का प्लांट लगाकर ख़ुद ही उसकी बिक्री की जाए. इस पंचायत के सचिव जोगेंद्र प्रसाद शर्मा की नियुक्ति यहां कुछ महीने पहले ही हुई है. वह बताते हैं कि जबसे हम इस गांव में आए हैं, पौधे ही लगवा रहे हैं.
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