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Wednesday, May 09, 2012

नदी और साबुन ' कविता का शेष अंश

'नदी और साबुन' का आशय स्पष्ट होने के लिए कविता का शेष अंश का भी पढ़ना अनिवार्य है।
नदी और साबुन ' कविता का शेष अंश 
एक नीली साबुन-बट्टी
वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का 
बहुप्रचलित साबुन है। 
दुखियारी महतारी है गंगा 
उसका जी काँपता है डर से 
उसकी प्रतिद्वंद्वी हथेली-भर की वह 
जो साबुन की टिकिया है 
इजारेदार पूँजीवाद की बिटिया है 
उसका बलाबली झाग उठने से पहले 
गंगा के दिल में हौल उठता है। 
 (महतारी : माँ, महाबली : अत्यंत बली, बट्टी : छोटी गोल लोटिया-टिकिया, इजारे दार : ठेकेदार, हौल : डर,भय)
साभार - रवि, चिराग

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