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Friday, October 08, 2010

बार बार पढें, सोचें...हम हैं कौन?

    यहाँ दबाएँ। क्या हाल हैं?

3 comments:

  1. अज्ञानता की जब तक है,
    घनी धुँध छायी; वह 'क़ाली' है.
    भद्रक़ाली - कपालिनी - डरावनी है.
    ज्ञानरूप जब चक्षु खुला,
    देखा, अरे! वह 'गोरी' है, 'गौरी' है.
    वह अब अम्बा है, जगदम्बा है
    ब्रह्मानी रूद्राणी कमला कल्याणी है
    चेतना हुई है अब जागृत,
    माँ ने इसे कर दिया है- झंकृत.
    सचमुच आज सन्मार्ग दिखाया है,
    मुझे सत्य का बोध कराया है.

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